सुशील शर्मा
जब अंतर्मन चोटिल हो।
जब मन मे कांटे चुभें।
जब कोई प्रतिकार करे।
जब मन आहत हो।
समझ जाना कि तुम सत्य के करीब हो।
जब मन की वेदना ।
शब्दों के सांचे में ढलने लगे।
जब अंतस का दर्द।
बाहर उबलने लगे।
सोच लेना कि तुम्हे लोग स्नेह करने लगे हैं।
जब अपनों के शब्दबाण चुभने लगें
जब अपने ही मन से उतरने लगें।
जब खुद की परछाईं साथ छोड़ दे।
जब साफ रास्ते पर भी ठोकर लगे
सोच लेना तुम संपूर्णता की ओर जा रहे हो।
जब मन दूसरों को माफ करने लगे।
जब गुस्सा प्यार में बदलने लगे।
जब विषमता में भी हर्ष दिखने लगे
जब अपमान में भी मन शांत रहे।
सोच लेना कि तुम दूसरों से ऊपर उठ रहे हो।
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