वक्त की परिभाषा क्यों बदलती है।
देह वही है भाषा क्यों बदलती जाती है।
कागज के फूल कभी महका नहीं करते।
तेरे अंदर की निराशा क्यों बदलती जाती है।
आँगन में उदास चूल्हा क्यों धुंआ देता है।
माँ की रोटी की आशा क्यों बदलती जाती है।
दर्द शब्दों में क्या समेटा जा सकता है।
तेरे मेरे प्यार की परिभाषा क्यों बदल जाती है।
संसद में पड़े बेहोश सच को भी देखो।
चुनाव में नेताओं की भाषा क्यों बदल जाती है।
रिश्तों के अनुबंध टूट कर क्यों बिखर जाते हैं।
स्नेह के स्पर्श की अभिलाषा क्यों बदल जाती है।
सुशील शर्मा
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