Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विषैले रसायनों का शिकार हमारा स्वास्थ्य

 


       एक दिन बाजार से हरी सब्जी लेकर आया था पत्नी ने  हरे परवल की सब्जी बनाने         के लिए जैसे ही उन्हें धोया तो हरे रंग का रसायन उनमे से निकलने लगा एवं         उसके हाथों में जलन पड़ने लगी पता चला की उन परवलों को ज्यादा दिन हरा रखने         के लिए प्रिजर्वेटिव के रूप में खतरनाक रसायन का प्रयोग किया गया था।  

       हम सभी जानते हैं की हमारे प्रतिदिन के उपयोग में हम खतरनाक रसायनो को अपने         शरीर में अंदर डाल रहे हैं। हमारे अनाजों में खतरनाक रासायनिक पेस्टिसाइड         एवं सौन्दर्य प्रसाधनों में विषैले रसायनो का प्रयोग आम हो गया है। ये          खतरनाक रसायन हमारे वातावरण में घुल कर उसे विषैला बना रहें हैं। हवा         जिसमें हम साँस लेते हैं ,जो हम खाना खाते हैं ,जो पानी हम पीते हैं और जो         सौन्दर्य प्रसाधन हम त्वचा में लगाते हैं इन सभी में विषैले रसायनों का         प्रयोग हो रहा है। ये सभी धीमें जहर हैं जिनका तत्काल कोई प्रभाव नहीं होता         है किन्तु आगे चल कर ये गंभीर बीमारी का कारण बनते हैं। एक सर्वे के अनुसार         करीब 90 % कैंसर का कारण भोजन एवं पर्यावरण का विषेलापन होता है। सर्वे में         एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया है कि मानव शरीर में करीब 300 मानव निर्मित         रसायन पाये गएँ हैं जो की शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले रसायन         हैं।कीटनाशकों ने लाखों लोगों को स्थाई रूप से बीमार बनाया है जिनमें से         ज्यादातर मितली (नॉसी), डायरिया, दमा, साईनस, एलर्जी, प्रतिरोधक क्षमता में         कमी और मोतियाबिंद की समस्या का सामना कर रहे हैं। 1984 में मिथाइल         आइसोसाइनेट नामक गैस का भोपाल में  रिसाव हुआ था और अब तक इससे प्रभावित 24         हजार लोगों की मौत हो चुकी है क्योंकि उक्त गैस में फास्जीन, क्लोरोफार्म,         हाइड्रोक्लोरिक एसिड जैसे तत्वों का मिश्रण था। 

       ये रसायन जंगली पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहें हैं एवं इसका शिकार         पक्षी, हिरन ,जंगली सूअर, घड़ियाल ,मेंढक इत्यादि जो की फसलों को खाते हैं         एवं इनकी भोजन श्रंखला में जो भी जंतु आतें हैं वो सब इन जहरीले रसायनो का         शिकार होतें हैं।जहरीले रसायनो के फलस्वरूप विगत तीन वर्षों में भारत में         गिध्दों की संख्या में 90 फीसदी की कमी आ गई है ।

       अधिकांश खाद्य उत्पादों पर लेबिल लगा होता है की उस उत्पाद में किन किन         तत्वों का प्रयोग किया गया है लेकिन हम लापरवाही के कारण  या अज्ञानतावश उस         जानकारी को नहीं पढ़ते हैं। किन्तु इस को पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण होता है         क्योंकि इसको पढ़ने से हम  किन रसायनो का उपयोग अपने खाने में कर रहें हैं         एवं उन रसायनों का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसकी जानकारी रखना बहुत         जरूरी है। 

       विषैले रसायन हमारे शरीर में कहाँ से आते हैं :-         विषैले रसायन हमारे  शरीर में कई जगह से पहुँचते हैं जिनमे मुख्य स्त्रोत         निम्न हैं। 

       1. अत्यधिक मात्रा में रासायनिक खादों के प्रयोग से ये रसायन मिटटी से रिस         कर भूजल में मिल जाते हैं एवं इस जल का प्रयोग हम पीने के पानी के रूप में         करते हैं। 

       2. कृत्रिम रूप से फलों को पकाने एवं सब्जियों को ताजा रखने के लिए         दुकानदार खतरनाक रसायनों का प्रयोग करते है जो इन फलो एवं सब्जियों के साथ         हमारे शरीर में पहुंचतें हैं। 

       3. डेरी मालकों द्वारा गाय एवं भैसों से  ज्यादा दूध लेने के लिए रसायनों         के इंजेक्शन लगाये जाते हैं ये रसायन दूध के माध्यम से हमारे शरीर में         पहुंचतें हैं।

       4. फसलें एवं सब्जियां मिटटी के प्रदुषण से प्रभावित होती हैं अनुपयुक्त         धातुएं एवं तत्व इन सब्जियों एवं अनाज के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँचते         हैं।

       5. सड़कों पर वाहनों से निकले धुओं में विभिन्न प्रकार के रसायन एवं गैस         घुले रहतें जो साँस लेने पर हमारे शरीर में जाकर फेफड़ों एवं स्वांस नाली को         प्रभावित करते हैं। 

       6. फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं एवं अपशिष्ट पदार्थ वातावरण की वायु         एवं पानी में घुलकर हमारे शरीर में अंदर जाकर नुकसान पहुंचाते हैं। 

       अनाज एवं सब्जियों में इन तत्वों का सांद्रण स्वास्थ्य के लिए बहुत ही         हानिकारक होता है।लगातार प्रदूषित अनाज एवं सब्जियों में भारी तत्वों की         मात्रा अनुपात से अधिक होने से  विभिन्न प्रकार के रोग जन्म लेते हैं।         जिनमे तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचाने वाली बीमारियाँ ,हृदय के रोग         ,मूत्र रोग ,मस्तिष्क से सम्बंधित रोग प्रमुख हैं। विभिन्न प्रकार के तत्व         एवं धातुएं जो विभिन्न तरीकों से हमारे शरीर के अंदर जातें हैं  हमारे          स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं का वर्गीकरण निम्नानुसार है। 

       1. पोषण के लिए आवश्यक तत्व :-कोबाल्ट,क्रोमियम ,तांबा,लोहा ,मैगनीज         ,मोलीब्लडनम,सेलेनियम,और जस्ता। 

       2. संभावित फायदा वाले तत्व :- बोरान,सिलिकॉन  निकिल ,वैनेडियम। 

       3. तत्व जिनके बारे में शारीरिक लाभ का कोई प्रमाण नहीं है :-एल्युमीनियम         ,एन्टीमनी,आर्सेनिक ,बेरियम,बेरिलियम,कैडमियम,लेड,पारा,चांदी एवं         स्ट्रॉन्शियम मुख्य हैं। 

       हमारे शरीर के लिए पोषक तत्व एक निश्चित मात्रा में मिलने पर ही लाभकारी         होतें हैं अगर इनकी मात्रा ज्यादा हो जाती हैं तो ये विषैले तत्व की तरह         व्यवहार करने लगते हैं। हमारे शरीर में जाने वाले तत्वों को तीन श्रेणियों         में बांटा जा सकता है। 

       A. अति महत्वपूर्ण पोषक तत्व :-ये तत्व शरीर की मेटाबोलिक क्रियाओं एवं         अंगों के व्यवस्थित सञ्चालन के लिए अति आवश्यक होते हैं। इनमें         कैल्सियम,मेगनीज ,सोडियम एवं पोटेशियम प्रमुख हैं। 

       B. सूक्ष्म पोषक तत्व :-ये तत्व एवं धातुएं शरीर के लिए एक निश्चित मात्रा         में पोषक तत्व का कार्य करतें हैं लेकिन अधिक मात्रा में होने पर अपना         विषेला प्रभाव प्रदर्शित करने लगते हैं। इनमे सिलिकॉन ,निकिल,बोरान एवं         वैनेडियम प्रमुख हैं। 

       C. विषैले तत्व :-ये तत्व एवं धातुएं मानव शरीर के लिए विषेला प्रभाव         उत्पन्न करती हैं। इनसे शरीर में विभिन्न प्रकार की विसंगतियां एवं कैंसर         जैसे रोग उत्पन्न होते हैं। इनमें आर्सेनिक क्रोमियम ,लेड, पारा प्रमुख         हैं। 


       निम्न          आंकड़े          दर्शाते हैं की स्वस्थ मनुष्य में तत्वों की कितनी मात्रा होनी चाहिए एवं         अधिकतम मात्रा जो मनुष्य को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। 


                   पुरुष / महिला

                   cu(mg/d)

                   fe(mg/d)

                   Mn(mg/d)

                   Se(mg/d)

                   Zn(mg/d)

                   आवश्यक ऊर्जा हेतु मात्रा 

                   पुरुष 

                   0.7

                   8.1

                   2.3

                   45

                   9.4

                   महिला

                   0.7

                   8

                   1.8

                   45

                   6.8

                   स्वस्थ मनुष्य के लिए आवश्यक मात्रा 

                   पुरुष 

                   0.9

                   8

                   -

                   55

                   11

                   महिला

                   0.9

                   18

                   -

                   55

                   8

                   अधिकतम मात्रा  नुकसान नहीं करती है 

                   पुरुष 

                   10

                   45

                   11

                   400

                   40

                   महिला

                   10

                   45

                   11

                   400

                   40

       सब्जियों में विभिन्न तत्वों की सुरक्षित मात्रा  के आंकड़ें निम्नानुसार         हैं। 

                   cd(μg/g)

                   cu(μg/g)

                   cr(μg/g)

                   pb(μg/g)

                   zn(μg/g)

                   0.2

                   73.3

                   2.3

                   0.3

                   9.4

       एक औसत भारतीय अपने दैनिक आहार में स्वादिष्ट भोजन के साथ 0.27 मिलीग्राम         डीडीटी भी अपने पेट में डालता है जिसके फलस्वरूप औसत भारतीय के शरीर के         ऊतकों में एकत्रित हुये डीडीटी का स्तर 12.8 से 31 पीपीएम यानी विष्व में         सबसे ऊंचा हैं। इसी तरह गेहूं में कीटनाशक का स्तर 1.6 से 17.4 पीपीएम,         चावल में 0.8 से 16.4 पीपीएम, दालों में 2.9 से 16.9 पीपीएम, मूंगफली में         3.0 से 19.1 पीपीएम, साग-सब्जी में 5.00 और आलू में 68.5 पीपीएम तक डीडीटी         पाया गया है। महाराष्ट्र में डेयरी द्वारा बोतलों में बिकने वाले दूध के 90         प्रतिशत नमूनों में 4.8 से 6.3 पीपीएम तक डिल्ड्रीन भी पाया गया है। 

       खाने को सुरक्षित बनाना हमारी संस्कृति एवं सभ्यता का हिस्सा है। आजकल सभी         खाद्य उत्पादों का संरक्षण विभिन्न प्रकार के परिरक्षको (preservative ) के         द्वारा किया जाता है हालाँकि ये मानकों के आधार पर होता है किन्तु फिर भी         इन में कई छुपे हुए रसायन होतें हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होतें         हैं। हमारे रसोई के कुछ मुख्य परिरक्षक(preservative ) ,खाद्य योजक         (additives ) एवं स्वाद बढ़ने वाले रसायन (flavour ) जो शरीर में  अधिक         मात्रा में पहुँचाने पर नुकसान करते हैं ,निम्नानुसार हैं। 

       कृत्रिम फ्लेवर :-खाना         पकाने से खाने की महक ख़त्म हो जाती है अतः खाने को प्राकृतिक महक देने के         लिए कृत्रिम फ्लेवर का प्रयोग किया जाता है। इन फ्लेवर में कई प्रकार के         रसायन होतें हैं एवं इनमे कोई भी पोषक तत्व नहीं होता है ये आजकल सभी खाद्य         उत्पादों में पाये जातें हैं जिनमे  ब्रेड,सेरल्स ,योगार्ट ,सूप प्रमुख हैं         इन रसायनों से  गले में सूजन ,सर्दी खांसी ,और स्मृति लुप्त होने की         बीमारियां होती हैं। 

       समृद्ध आंटा :-ऐसे         आटें में निपासिन ,थेमाइन ,रइबोफ्लाविन ,फोलिक एसिड आदि विषैले रसायन         मिलाये जातें हैं। 

       हाइड्रोजिनेटेड तेल :-इन         तेलों को बनाने की विधि में इन्हे अत्यंत ताप  पर गर्म करके शीतल किया जाता         है.इस प्रक्रिया में इनका द्रव वाला हिस्सा ठोस वासा में परिवर्तित हो जाता         है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।  

       मोनो सोडियम ग्लूकोमेट :-यह         खड़ी उत्पादों को संरक्षित करने वाला पदार्थ है जो अत्यंत विषेला होता है।         

       शक्कर         :-अधिक मात्रा  में लेने से यह शरीर की मेटाबोलिक क्रियाओं को प्रभावित         करती है एवं इससे मधुमेह ,उच्च रक्त चाप एवं हार्मोन डिसऑर्डर की बीमारी         उत्पन्न होती हैं। 

       पोटेशियम एवं सोडियम बेंजोएट         :-सोडियम बेंजोएट से खतरनाक कार्सिनोजेनिक विष बनता है बेंजोएट मनुष्य के         डीएनए को नुकसान पहुंचाता है। यह अधिकांश सेव के अर्क ,जैम ,एवं सीरप में         मिलाया जाता है। 

       सोडियम क्लोराइड :-अधिक         मात्रा में सेवन करने से उच्च रक्त चाप एवं मस्तिष्क सम्बन्धी बीमारियां         होती हैं। 

       इसके अलावा          ब्यूटिलि कृत हाइडॉक्सीएनीसोल (BHA ),ब्यूटिलि कृत हाइड्रॉक्सीटालवीन(BHT )         नाइट्रेटस ,पोली सारवेट 60 ,65, 80  सलफाइट तृतीयक ब्यूटाइल उदकुनैन (TBHQ)         कैनोला तेल         इत्यादि अन्य रसायन हैं जो शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं। 

       भारतीय उपभोक्ता को जागरूक बनाने की जरूरत है। जब भी हम कोई वस्तु बाजार से         खरीदने जातें हैं तो उस खाद्य उत्पाद पर लगा लेबिल ध्यान से नहीं पढ़ते। उस         उत्पाद पर लगे लेबिल में उस का संघटन लिख रहता है जिससे हम जान सकते हैं कि         उस उत्पाद में किन किन रसायनों का प्रयोग किया गया है। अतः आप अपने घर में         जो भी डिब्बाबन्द खाद्य प्रयोग कर रहे हैं उनके लेबल पर दी गई जानकारी         विस्तार से पढ़े ! बैच नम्बर व पैक करने की तिथि भी अवश्य पढ़े। भारत में         अधिकांश विषैले खाद्य पदार्थों का स्त्रोत पेस्टिसाइड हैं। भारत में किसान         बगैर किसी पैमाने के खेतों में रासायनिक खादों का प्रयोग करते हैं। अधिकांश         रासायनिक खाद बनाने वाली कंपनियां हिदायत देतीं हैं कि किस तरह और किस         अनुपात में एवं कितने दिनों के अंतर से रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाना         चाहिए परन्तु अज्ञानतावश या लापरवाही के चलते किसान इन निर्देशों की नहीं         मानते एवं अपने मनमाने ढंग से इन का प्रयोग खेतों में करते हैं जिससे         उत्पादित खाद्य पदार्थ जहरीले होकर मनुष्य को बीमारियों का शिकार बनाते         हैं। सब्जी उत्पादक किसान अपनी सब्जियों को बाजार में लाने के पहले खतरनाक         रसायनों में डुबोतें हैं उनका मानना है की ऐसा करने से सब्जी की चमक एवं         ताजगी बढ़ेगी एवं उन्हें ज्यादा दाम मिलेंगे। इस मानसिकता को बदलने के लिए         किसानों को प्रशिक्षण देना जरूरी है। रासायनिक खादों के बाजार को नियंत्रित         करना जरूरी इसके लिए रासायनिक खादों के बेचने के लायसेंस उन व्यापारियों को         ही दिए जावें जो किसानों को  प्रशिक्षण एवं  पूर्ण हिदायत के साथ रासायनिक         खाद बेचें।

 

 

सुशील कुमार शर्मा

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