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विश्वास का रिश्ता

 

(लघुकथा)
सुशील शर्मा

 

 

 

अतुल को बहुत तेज गुस्सा आ रहा था।उसे आश्चर्य हो रहा था कि प्रवीणा उसे कितना गलत समझ रही है।
प्रवीणा और अतुल एक ही आफिस में काम करते है दोनों के विचार आपस मे बहुत मिलते हैं इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई।एक दूसरे से अपने मन की बात बगैर किसी संकोच के कह देते थे। अतुल अपनी शायरी कविता सभी उसे सुनाता था ।
अतुल बहुत बिंदास था वह मजाक में बहुत घनिष्ठ होकर बतियाने लगता था जिससे प्रवीणा को डर लगता था कि कही अतुल के मन में उसके मन मे कहीं कोई दूसरे भाव तो नही हैं किंतु वह कहने की हिम्मत नही जुटा पाती थी। उसको डर लगता था कि कहीं उसका पति उनके संबंधों को गलत न समझ ले।एक दो बार उसने अतुल को परोक्ष रूप से बताने की कोशिश की लेकिन अतुल के मन मे कुछ नही था इसलिए उसने ध्यान नही दिया।
"अतुल तुम से एक बात कहनी थी" प्रवीणा ने डरते हुआ कहा।
"बोलो प्रिया"अतुल ने उसे चिड़ाते हुए कहा।
"मैं आपसे भाई का रिश्ता बनाना चाहती हूँ"प्रवीणा ने झिझकते हुए कहा।
अतुल आवाक सा प्रवीणा को देख रहा था।
"लेकिन मेरे मन में तुम्हारे लिए बहिन की कोई भावना नही है"अतुल ने गुस्से में कहा।
"देखो अतुल मैं नही चाहती लोग हमारे रिश्ते को गलत समझे"विशेष कर हमारे परिवार वाले।
प्रवीणा ने बहुत धीमे स्वर में कहा।
"अच्छा तो तुम मुझे इसलिए भाई बनाना चाहती हो कि लोग कुछ न कहें"अतुल को बहुत तेज गुस्सा आ रहा था।

 

 

वह मन ही मन सोच रहा था कि औरतें कितनी संकीर्ण दिमाग की होती है ।
उसने प्रवीणा को समझाया देखो "प्रवीणा रिश्ते डर में नही बनते तुम मुझ से भाई का रिश्ता इसलिए बनाना चाहती हो कि कोई हमारे रिश्ते को गलत न समझे"
"इसलिए भी कि हमारे मन में और कोई दूसरा भाव न पनपे"प्रवीणा ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा।

 

 

"दूसरे भाव से मतलब प्रेम का भाव न"अतुल को हंसी आ गई।

 

 

"हां"प्रवीणा उसके चेहरे को देख रही थी।
"तुम औरतों में यही कमी होती है हर बात को शक की निगाह से देखती हो और उसी हिसाब से अपना आचरण करने लगती हो"अतुल ने लगभग डांटते हुए कहा।
"तुम्हे क्यों लगा कि मैं तुम्हे प्यार करने लगूंगा सिर्फ इसलिए कि मैं तुमसे अभिन्न होकर बातें करता हूँ इसलिए"अतुल को गुस्सा आ रहा था।
"मैं तुम्हे समझदार लड़की मानता था किंतु हो तुम भी आखिर औरत ही न" अतुल ने खीजते हुए कहा।
"नही अतुल मैं आपकी बहुत इज़्ज़त करती हूं मैं नही चाहती आपको कोई गलत फहमी हो इसलिए"प्रवीणा ने सफाई देते हुए कहा।
"इसलिए तुम मुझे भाई बनाना चाहती हो"अतुल ने कटाक्ष किया।
"हां"प्रवीणा ने भोले पन से उत्तर दिया।
प्रवीणा रिश्ते जब बनते है जब दोनों ओर से मन में वो भावनाएं हों चाहे प्रेम का रिश्ता हो या कोई और रिश्ता।रिश्ते बाजार में बिकने वाली ड्रेस नही है कि जब चाहो पहन लो और उतार दो।बहुत सोच समझना चाहिए।"अतुल प्रवीणा को समझा रहा था।

 

 

"और अगर तुम्हारे भाई बना लेने पर भी मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई दूसरा भाव रहा तो ये रिश्ते के नाम पर कितनी बड़ी गाली होगी।"अतुल बेबाक तरीके से प्रवीणा को समझा रहा था।

 

 

प्रवीणा को लगा कि अतुल सच कह रहा है रिश्ते की बुनियाद विश्वास है न कि रिश्तों के नाम कई उदाहरण है कि बहिन भाई का धर्म का रिश्ता बना बाद में शादी करली या रिश्ते की आड़ में गलत काम कर लिया गया।इससे रिश्तों की बदनामी के सिवा कुछ नही है ।
"मुझे माफ़ करदो अतुल मैंने तुमको गलत समझा।आज से हमारे बीच सिर्फ एक ही रिश्ता है दोस्ती और विश्वास का"प्रवीणा को अपनी गलती का अहसास हो गया था।

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