सुशील शर्मा
ढोल नगाड़ा
पीटती सी जिंदगी
बनी तमाशा।
दर्द छलके
जीवन गगरिया
भीगती आँखें
मन के कोने
दर्द बसता गया
ओंठ हँसते।
सांसों की डोर
जीवन की पतंग
मौत है छोर।
चुनावी रंग
कीचड़ उछालते
काले चेहरे।
नर पिशाच
दहेज़ अभिशाप
जलती बहु।
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