Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वियोग एवम श्रृंगार

 

सपने मेरी आँख के नयन नीर टपकाएं।

दिल की सरहद छोड़ कर तेरे तट तक जायँ।



नारी जीवन सर्प सा डसे स्वयं को आज।

पंक्षी के पर कट गये बंद हुई परवाज़।



जादू तेरी आँख का जाय ह्रदय को बींध।

मन चंचल बेचैन है नैन निहारें नींद।

 

पिघली पिघली आंच सी तुम हो तन के पास।

मन मेरा बैरी बना तुम पर अटकी साँस।

 

सागर सी गहरी लगे मुझको तेरी आँख।

जीवन पिघला बर्फ सा ,मन मयूर की पाँख।

 

मन मयूर मकरंद भयो जैसे नाचे मोर।

प्रीत पियारी सी लगे मन में उठत हिलोर।

 

प्रीत लपट में झुलस कर मन हंसा बेचैन।

एक नजर की आस में सावन बरसे नैन।

 

सागर जैसा दर्द है पर्वत जैसी पीर।

प्रियतम तेरे विरह में जीवन हुआ अधीर।

 

सुशील कुमार शर्मा

 

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