आज रब को भी मेरा खयाल आ गया !
ख़त में उनके ए क्या कमाल आ गया !!
कासिद का आना मेरे दर ए ख़ुदा !
मायूस चेहरे पे कैसा जमाल आ गया !!
थरथराते मेरे हाँथ, जाने कब रूकेंगे !
दिल में जानलेवा भूचाल आ गया !!
इसी ख़त में मेरी ज़िंदगी या मौत होगी !
मन में ए कैसा सवाल आ गया !!
उनके ख़त पर "साँझ" हर शै वार है !
बरसों का इंतज़ार बहरहाल आ गया !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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