Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आज रब को भी मेरा खयाल आ गया !

 

आज रब को भी मेरा खयाल आ गया !
ख़त में उनके ए क्या कमाल आ गया !!

 

कासिद का आना मेरे दर ए ख़ुदा !
मायूस चेहरे पे कैसा जमाल आ गया !!

 

थरथराते मेरे हाँथ, जाने कब रूकेंगे !
दिल में जानलेवा भूचाल आ गया !!

 

इसी ख़त में मेरी ज़िंदगी या मौत होगी !
मन में ए कैसा सवाल आ गया !!

 

उनके ख़त पर "साँझ" हर शै वार है !
बरसों का इंतज़ार बहरहाल आ गया !!

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ