Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अच्छे दिन

 

आलू, सब्जी, प्याज़, टमाटर सस्ते हो गये !
अच्छे दिन की चाह में हम खस्ते हो गये !!

 

ड्राई फ्रूट को सोचकर हलक़ ड्राई है !
घर की खीर में सपने पिस्ते हो गये !!

 

हाथ जोड़ ले गये हमारा एकमेव अधिकार !
टी.व्ही में आते हैं पक्के फरिश्ते हो गये !!

 

बिन टमाटर के बीवी के ताने सुनता हूँ !
इन साहब के चक्कर मे कड़वे रिश्ते हो गये !!

 

"साँझ" के स्टेटस की आन पड़ी है लाया हूँ !
पउवे टमाटर मेरे घर के ग़ुलदश्ते हो गये !!

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ