अपने आगे कब दूसरे की परवाह होती है !
विमानों को कहाँ उपर परिंदों की चाह होती है !!
भीड़ में पैदल पथिक को कौन देता है रास्ता !
मोटरों को हरदम भोंपुओं से ही राह होती है !!
अंजाने शहर में भटक जाने का ख़तरा है !
सही रहबर ना हो मंज़िल गुमराह होती है !!
सभी को मौका बराबर का देता है वो हरदम !
क्या सितारों को मनाने रात भी सियाह होती है !!
"साँझ" तेरी हसरतों की बस उसको है परवाह !
हमारे हर करम पर उसकी निगाह होती है !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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