Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बातें करो ये रात निकलेगी !

 

बातें करो ये रात निकलेगी !
मन बनाओ कोई बात निकलेगी !!

 

 

कहाँ मालूम था ग़ालिब को तब !
पीछे शायरों की बारात निकलेगी !!

 

 

वो छुपा है झूठ के चादर में !
अबके महफिल मे जात निकलेगी !!

 

 

सूखी पत्तियों के झड़ने से !
पेड़ों पर नयी पात निकलेगी !!

 

 

जीत के जज़्बात और ऊँचा रख !
कभी उसकी भी मात निकलेगी !!

 

 

"साँझ" थोड़ा भूलकर उन्हें देखो,
थोड़ी सोने को रात निकलेगी !!

 

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

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