बातें करो ये रात निकलेगी !
मन बनाओ कोई बात निकलेगी !!
कहाँ मालूम था ग़ालिब को तब !
पीछे शायरों की बारात निकलेगी !!
वो छुपा है झूठ के चादर में !
अबके महफिल मे जात निकलेगी !!
सूखी पत्तियों के झड़ने से !
पेड़ों पर नयी पात निकलेगी !!
जीत के जज़्बात और ऊँचा रख !
कभी उसकी भी मात निकलेगी !!
"साँझ" थोड़ा भूलकर उन्हें देखो,
थोड़ी सोने को रात निकलेगी !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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