बूढ़ी चाची,
सुबह से चुप,
कहानी कहती,
अँधियारा गुप !
अस्सी साल,
फिर भी कमाल,
दन दन चलती,
घोड़े की चाल !
बाल हैं भूरे,
पूरे के पूरे,
बूढ़ी परी,
आये अंजोरे !
हरेक बात,
लाख टके की,
मोटी रोटी,
खाये मक्के की !
सारे गाँव पर,
उसकी छाँव,
आया छत पर,
कौआ काँव !
घूँघट आज,
उसकी लाज,
गलती मेरी,
गिरी है गाज !
मुँह अंधियारे,
रोज सकारे,
बच्चों सारे,
उठो दुलारे !
पंछी सारे,
करे हैं काम,
त्यागो आलस,
और आराम !
कभी न भूलो,
अपना कर्तव्य,
हिसाब रखना,
आय और व्यय !
बोलो सारे,
राम-सीता,
आज का पाठ,
रामायण गीता !
आज सुबह,
क्यूँ खास नही,
आँख खुली,
पर साँस नही !
रात तारा टूटा,
दिल को कूटा,
"साँझ" सपना,
सच्चा या झूठा !
सुनील मिश्रा "साँझ"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY