Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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धूरि खेलत श्याम, देखो महतारी

 

 

shyaam

 

 

धूरि खेलत श्याम, देखो महतारी
बलदाउ बने हैं, श्याम की सवारी

 

 

ग्वालिन सब निहारि, श्याम का रूप,
कैसी लीला करत, आज बाकें बिहारी

 

 

रूप का यह तेज, देख आँख झपत,
मेरा भाग जगा, पाये दर्शन त्रिपुरारी

 

 

माथे मोर पंख भयो, जस चाँद मुकुट,
करधन ज्यूँ झूमत, सोहत बड़ी भारी

 

 

माता बुलावै, "साँझ" कहि मोर कान्हा,
ज्यों तू सतावो, मोसे ना करो रारी

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

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