अपने सारे ग़ुबार बहाकर देखो !
एक बार गंगा नहाकर देखो !!
उतार दो दिल की बातें कागज पर !
ख़ुद कभी शायर कहाकर देखो !!
दर्द बहने नहीं पाए आँखों से !
आँसुओं को दिल में जमाकर देखो !!
दुश्मन हों तो नींद भी देर से आती है !
पहल करके दुश्मनी मिटाकर देखो !!
चुटकुले किताबों में रोते हैं हमेशा !
कभी दर्दमंदों को सुनाकर देखो !!
अपने पेट के जुगाड़ में तो सब हैं !
कभी ग़रीब की भूख मिटाकर देखो !!
कभी गिरने पर सहारा सबको लगता है !
"साँझ" ख़ुद को भी कभी लाठी बनाकर देखो !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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