Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

एक बार गंगा नहाकर देखो !!

 

अपने सारे ग़ुबार बहाकर देखो !
एक बार गंगा नहाकर देखो !!

 

उतार दो दिल की बातें कागज पर !
ख़ुद कभी शायर कहाकर देखो !!

 

दर्द बहने नहीं पाए आँखों से !
आँसुओं को दिल में जमाकर देखो !!

 

दुश्मन हों तो नींद भी देर से आती है !
पहल करके दुश्मनी मिटाकर देखो !!

 

चुटकुले किताबों में रोते हैं हमेशा !
कभी दर्दमंदों को सुनाकर देखो !!

 

अपने पेट के जुगाड़ में तो सब हैं !
कभी ग़रीब की भूख मिटाकर देखो !!

 

कभी गिरने पर सहारा सबको लगता है !
"साँझ" ख़ुद को भी कभी लाठी बनाकर देखो !!

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ