एक एहसास ही तो था,
वो मेरी रूह में समाया था !
मेरा चैन मेरी नींद था वो,
जिससे मैंने दिल लगाया था !!
मेरी ख़ुशी का सबब था वो,
एक जादूगर सा ग़जब था वो !
मेरी कल्पना शक्ति, विश्वास था,
मेरा भगवान, मेरा मज़हब था वो !!
बिछड़ा तो जेठ की तपन सा,
पास होके सावन की अगन सा !
वो एक पपीहा, बारिश की बूँद मैं,
मैं बादल, वो निष्पाप गगन सा !!
मैं उसके चक्षु, वो दृष्टि शक्ती मेरी,
मै उसका हौसला, वो उड़ान मेरी !
मैं प्यासा वो अमृत जलधार मेरी,
मैं बेढंगा सा वो आदर्श आकार मेरी !!
निराला जी की कोई गीत सा ,
धुन जैसे एक भैरवी संगीत सा,
एक अनुभूति पहली जीत सा,
"साँझ" पौध पर एक बूँद शीत सा !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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