हमारे दिल की खबर तुम तक पहुँचे
तुम्हारे इरादों की भनक हम भी पाये
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दिल से छेडा नहीं, जुबाँ से गाया नहीं
तुम्हें अभी तक वो राग सुनाया नहीं
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अब कहाँ बेबाक जबानी वाले
किसमें ढ़ूँढ़ें जख़्म निशानी वाले
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हमारे सफर को राह हमारी क़िस्मत देती
हमारी मंज़िल को आयाम मेरी हिम्मत देगी
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तुम्हें कब तक तेरी तनहाँइयाँ क़रार देंगी
हमारी आरजू कब तक मेरा इम्तेहान लेगी
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आज जो तेरी गली, गुजर के निकले
फिर वही गुम अरमाँ, जिगर के निकले
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बजाए इश्क़ के बन पड़े अगर तो कुछ कहो तो कहो
ज़फा-ओ-वफा के पार कुछ सुन सको तो सुनो
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अपने होठों की लाली, बहारों को उधार बाँट दिये
अजब हो यार तुम, काँटों को भी उसमें छाँट दिये
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मेरी चाहत की, इंतेहाँ हो तुम
मैं जानता हूँ, मेरी जाँ हो तुम
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सफर-ए-दरिया में इन्हीं मौजों का सहारा है
कश्ती की मस्ती है, और तूफाँ का इशारा है
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सोचता हूँ ग़र तू मेरे ख़याल में न होता
न होता ये शे'र, मेरा ऐसा हाल न होता
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अब हिम्मत नहीं बाकी, फिर से परवाज़ भर लूँ
सिहर उठता हूँ, फिर से कहीं तूफाँ न आ जाये
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तेरा दिया कुछ भी है कुबूल
चाहे काटें हों या हों फूल
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कहाँ की बात कहाँ, कैसे बनाने वालों
ख़ुदा रहम करे तुझपर, ऐ जमाने वालों
सुनील मिश्रा "साँझ"
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