Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जफ़ाएँ जवान हूईं !

 

जब जब जफ़ाएँ जवान हूईं !
तब तब मुहव्बत लहूलुहान हुईं !!

 

चेहरे के भाव ना आते समझ !
उनकी आँखें तर्जुमान हुईं !!

 

बैठकर मनमानी सबने की !
अब कुर्सियाँ बेईमान हुईं !!

 

बेटा जवानी में छोड़ गया !
बेटियाँ बुढ़ापे का इम्तेहान हुईं !!

 

झूठ का मुखौटा चढ़ा हुआ !
सच्चाईयाँ बेजुबान हुईं !!

 

पूड़ियाँ उदास बासी सी !
बोटियाँ पकवान हुईं !!

 

"साँझ" बेजुबानों की चीखें आज !
जंगलों की दास्तान हुईं !!

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ