जब जब जफ़ाएँ जवान हूईं !
तब तब मुहव्बत लहूलुहान हुईं !!
चेहरे के भाव ना आते समझ !
उनकी आँखें तर्जुमान हुईं !!
बैठकर मनमानी सबने की !
अब कुर्सियाँ बेईमान हुईं !!
बेटा जवानी में छोड़ गया !
बेटियाँ बुढ़ापे का इम्तेहान हुईं !!
झूठ का मुखौटा चढ़ा हुआ !
सच्चाईयाँ बेजुबान हुईं !!
पूड़ियाँ उदास बासी सी !
बोटियाँ पकवान हुईं !!
"साँझ" बेजुबानों की चीखें आज !
जंगलों की दास्तान हुईं !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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