Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जो पीछे छूट गया, उसके वास्ते कम चले !!

 

जो पीछे छूट गया, उसके वास्ते कम चले !!
मंज़िलें कहती हैं... हमने रास्ते कम चले !!

 

 

सफर सुदूर का था, सड़कें पथरीली भी !
साथ उनका ग़म दिल पे उठाते कम चले !!

 

 

ख़ुद ही चलता तो शायद ये जमीं छोटी थी !
दुनियादारी में रिश्तों को निभाते कम चले !!

 

 

मैं भी नादान था, नादानियाँ हो गयीं कभी !
एक उसी नज़र से नज़रें चुराते कम चले !!

 

 

"साँझ" की धीमी चाल और मजहबी होना !
हर मोड़ के शिवालों पे फूल चढ़ाते कम चले !!

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

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