जो पीछे छूट गया, उसके वास्ते कम चले !!
मंज़िलें कहती हैं... हमने रास्ते कम चले !!
सफर सुदूर का था, सड़कें पथरीली भी !
साथ उनका ग़म दिल पे उठाते कम चले !!
ख़ुद ही चलता तो शायद ये जमीं छोटी थी !
दुनियादारी में रिश्तों को निभाते कम चले !!
मैं भी नादान था, नादानियाँ हो गयीं कभी !
एक उसी नज़र से नज़रें चुराते कम चले !!
"साँझ" की धीमी चाल और मजहबी होना !
हर मोड़ के शिवालों पे फूल चढ़ाते कम चले !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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