Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कोई समझा दे मुझे

 

 

कोई समझा दे मुझे कि, प्यार की इंतेहा उसे पाने में है?
या उसे टूट के चाहने में है, और उसमें मिल जाने में है!
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मिलता है सब कुछ मिलते मिलते आहिस्ता
जल्दबाजी में कुछ पाने की चाह अच्छी नहीं
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ये अंधेरे, बहार, रौनक, चाँद, तारे, बिजली सबकुछ
मेरे मौला जो है सारा कुछ इस जहाँ में तुझी से है
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लगा के आग ख़ुद अपनी जवानी बैठा है
सुनाने यार मेरा दिल की कहानी बैठा है
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मेरे अश'आर को मेरे दिलकी क़सम
आज लिखना है तुझे उसकी क़सम
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अपने गुनाहों को लाख छुपा लें हम सबसे
आईना सारे राज़ खोल देता है सामने आते
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दिया करेंगे तुम्हें फुसुर्दगी बहुत और
दुआ करो कि मेरी ज़िंदगी कम न हो
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ठोकरों आना हरेक दिन मेरी राहों में
मेरी चाल कम नहीं होगी मेरी आहों में
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कुछ पल हैं मेरे पास जिसे मैंने संभाल रक्खा है
मैं जी लूँगा भविष्य के हर पल याद करते उन्हें
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किसी की दया ना बंदगी चाहिए
हमको दो घूँट जिंदगी चाहिए
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मैं मेरे ख़ुद में, मुकम्मल हूँ शायद
अकेले चलने की आदत नहीं अभी
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दर्द पूरब से आए या पश्चिम से
मायने बराबर हैं हर तरफ से
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मुद्दत हुआ था ख़ुद से गुफ्तगू किये हुए
आइने सामने था, अपनी कुछ तारीफ कर दिए
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तेरी याद सिरहाने लेके,कल रात सो गया
फिर लौट आये वो पल, सपनों में खो गया
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तू जिस तरहा मौजूद है मुझमें
जैसे दैर-ओ-हरम में वो होता है
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आज किसी शख़्स ने छूकर बोला मुझसे
तुमको छूकर मेरी माँ याद आगई मुझको
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ग़मों को आज सहना, अकेले मंजूर नहीं
मज़ा तो तब है, जब माशूक की बाहों में रोयें
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हाथ लेके मेरे हाथों में, कुछ दूर और साथ चलो
लिल्लाह हम सारी दुनिया कुछ पलों में नाप लेंगे
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पैमाना छलक रहा है, महफिल में हर तरफ
कोई नज़रों से पिला रहा, बड़ी देर से इस तरफ
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देर करदी ज़रा सी, मंज़िल को पाने में
रहबर की थकन ने, मेरी चाल कम किए
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कुछ बच्चों के मन को बहलाने आयीं
ठंड के बाद तितलियाँ धूप नहाने आयीं
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सफर एकाकी, गर्मिये हालात हैं, दम भर लूँ
मंजिल अभी दूर है, सोचता हूँ, आराम कर लूँ
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ज़िंदगी है, ख़ुशियों, उदासियों का मिश्रण
जिसने समझ लिया, मुस्कुराता ही मिलेगा
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काश मेरे दर्द-ए-दिल की दवा मिल जाए
कफस से निकलूँ कि ताज़ी हवा मिल जाए
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यहाँ हर शख़्स होश का दावा करता है
आइने में देख खुद से दिखावा करता है
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तुझसे मिलकर ही लगा, ज़िंदगी के मायने जाना
आइना खुश है मुझे देखकर, मेरे अंदर जाने जाना
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तुझे याद किया आसमां को एकटक देखकर
कुछ शबनम के मोती मेरी आँखों से गिर गए
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यार के कुछ कुसूर आँके नहीं जाते
मुहब्बत में उसूल फाँके नहीं जाते
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एक दिन ये हवायें मेरा पता कह देगीं
जब मैं गर्द में अपना निशाँ खो दूँगा
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तू मुझमें ढूँढ ले हरकुछ
तू है ख़ुदा है थोड़ा मैं भी
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उल्फत, मुहब्बत, बेकरारी, बेबसी और इंतज़ार
देखते हैं अब क्या दिखाती है, दुनिया अगला मिजाज़
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दे दिया मैंने सब मुझमें जो हासिल था
मेरे हिस्से का मैंने कुछ नहीं रक्खा
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तेरी चाहत को कुबूल भी करते हैं
मत भूल हम कुछ उसूल भी रखते हैं
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गहरा है एक वो समंदर भी
गहरा हूँ ख़ुद मैं मेरे अंदर भी
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छोड़ के जाने से पहले, कोई इशारा भी कर देना
कोई हूर ढूँढ देना, आगे का सहारा भी कर देना
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हमको फिर कशमकश में लाते हैं!
रिश्ते यूँ हज़ार बार आजमाते हैं!!
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हमें याद है हर वो मंज़र, हमारे विसाल का
कितने बजे थे, कौन सा दिन था साल का
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अब कुछ और आरजू या जुस्तजू नहीं बाकी
दर्द-ए-दिल से हूँ जाँ बलब आरजू नहीं बाकी
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मुझमें बस देखता है तू रंज ज़माने वाला
मिल गया मुझको आईना दिखाने वाला
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हाँ!! ये मुमकिन है कि मैं तुझमें नहीं हूँ
ना पूछना मुझसे कि तू मुझमें कब नहीं
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या ख़ुदा तू चमके आफताब जैसे
और मैं ख़ुद में 'साँझ' हो जाऊँ
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महबूब की आगोश में रो लें या हँस लें बराबर है
इश्क़ का एहसास होना ही मुकम्मल है ख़ुद में
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मैं ख़ुद अपने में मशरुफ हूँ बहुत आजकल
तेरे ख़याल ने भी दुनिया से जुदा रक्खा है
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सुनील मिश्रा "साँझ"

 

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