कोयल श्रोता बनी, कौवे गाने लगे अबतो !
मेढक भी 'बसंत बहार' सुनाने लगे अबतो !!
कफ़स में हैं चिल्लाते सारी नसल के तोते !!
सर्प आके फुफकारने सिरहाने लगे अबतो !!
जब से उमर दिखने लगी जंगल के राजा की !
मुये खरगोश भी सामने चिढ़ाने लगे अबतो !!
जबके हाँथी अबके बेचारे ऊँट से दिखते हैं !
पिद्दी सियार भी इनको चराने लगे अबतो !!
कभी जंगल में रहती थी हरदम की भागादौड़ी !
"साँझ" प्राणी भी छुट्टियाँ मनाने लगे अबतो !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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