लोग जो सिखाते थे मुझे जीने का हुनर
जब उनकी जाँ पे बन आयी तो अदा भूल गये
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झूठ का अंधेरा कितना भी फैले
सच्चाई का एक दिया ही बहुत है
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वही देता है ताकत सबको खड़ा होने का
जमीं पे रहके समंदर को बड़ा होने का
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"साँझ" होने दे, सहर होने दे
जमके पिऊँगा, दोपहर होने दे
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अब तेरे आँसुओं की कीमत नहीं जानता
कभी एक कतरा मेरी जान के बराबर थी
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दिल-ओ-दिमाग से छोटा हुआ जा रहा
आदमी पर पेट से मोटा हुआ जा रहा
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"साँझ" क्या बदलेगा ज़माने की आरज़ू में,
कभी तू भी बदल के देख मेरी जुस्तजू में !
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कौन तेरे दिल में है, कौन तुझसे जुदा है
अल्लाह ही जाने कि, तेरा कौन ख़ुदा है
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तनहा दिल भला, जान भली
हुश्न वालों से न पहचान भली
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कर दिये ख़ून-ए-दिल और ये भी न पूछा
अब तुम ज़िंदा रहोगे तो आखिर कब तक
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दोनो में आखिर, बड़ा किसका कद है
शायद साहिल ! जो समंदर की हद है
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दिल में उठते हैं कितने आरमान रोज़ रोज़
अब किससे करें तौबा और किसपे मर मिटें
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दिल के राज खोल दें अगर कह दो
तुमको ख़ुदा बोल दें अगर कह दो
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आज करके कोई नेकी घर आया हूँ
बड़ा सुकून इतने दिनो के बाद पाया हूँ
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दे गया याद का दरिया, अपनी आगोश की कश्ती
उसको हमें ज़िंदा रखना था या मिटानी थी हस्ती
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तू ख़ुद भी आइने से कभी बात किया कर
अपने दिल के सवालों से शुरूआत किया कर
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मुझपर मेरे मौला मुझे, न कभी कोई गुमाँ हो
जमीं पे रहूँ सिमटकर, चाहे पकड़ में आसमाँ हो
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अनजबी सा गुजर के आना था
मुझको तेरी गली से जो आना था
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तेरी याद है मेरे पास क्या कम है
तुझे क्या ग़र मेरी आँख नम है
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हर चेहरे में कोई अपना तलाश करता हूँ
पत्थरों में आदतन देवता तलाश करता हूँ
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याद का क्या है? चली आती है
मुई बिन बताये चली भी जाती है
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कोई गहरा निशाँ छोड़ेंगे सारे जहान पर
ऊचाइयाँ नापेंगे जब अगली उडान पर
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मैकदा था लेकिन साकी न थी
प्यास मय की और बाकी न थी
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ऐश-ओ-तलब में सुकून-ए-दिल ढ़ूँढा करें
दिल के खालीपन को ये चीजें कैसे पूरा करें
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मुझको मेरे इश्क़ का ईनाम दिया गया है
हर रात जागने का नया काम दिया गया है
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ये जो तमाम राहें हैं, मेरी मंज़िल को नहीं ले जायेंगी
मेरी ज़िंदगी की क़श्ती को साहिल पे नहीं ले जायेंगी
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अच्छा वक़्त शायद बनावटी हालात दिखाता है
हाँ ! बुरा वक़्त आदमी को औकात दिखाता है
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मैख़ाने में मेरी आज मय से छिड़ गयी है
उसे क्या पता किस दिलजले से भिड़ गयी है
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जब दिल से रंज-ओ-ग़म निकाल पाया
जहाँ में चैन-ओ-अमन बहाल पाया
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हालात ये है गये रात तूफान के बाद
कहाँ काटेंगें अब उजड़े मकान के बाद
सुनील मिश्रा "साँझ"
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