ख़ुदा कुछ तो मेरे मनका होता ।
या मैं उनसा या वो मुझसा होता
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इश्क़ हर दिल को हुआ रहता है
शायद ही कोई अनछुआ रहता है
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खत में तेरा नाम ओ जफ़ा लिखकर
लिखा मिटाया हर दफा लिखकर
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अच्छा ही हुआ सवाल जवाब करके
उसे घाटा लगा मुझसे हिसाब करके
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मुझको फ़कत प्यारे, मेरे अपने उसूल हैं
ऐसे में मेरे लिये, तेरी ये शर्तें फिज़ूल हैं
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दर्द की मय, दवा होती है हुआ मालूम
मैख़ाने में मिले, कितने टूटे दिल मासूम
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किसी की चाह ने मुझको ऐसा सबक दिया
अब चाह कर भी किसी और को चाह नहीं सकता
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सफर में लेकर गये सामान इतना
ढोते ढोते कंधा हुआ कुर्बान इतना
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जब से मशहूर हो गया
बहुत मग़रूर हो गया
खामियाँ कितनी गिनायें
बड़ा बेसऊर हो गया
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जितनी जवानी में मज़ा आता है !
उतना ही बुढ़ापा सज़ा लाता है
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उस बुत की क्या नक्काशी है !
एक कलाकार की अय्याशी है !!
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हर उस नज़र से नज़र नही आता
मुहब्बत में कुछ नज़र नही आता
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कौन कहता तनहाई अच्छी नहीं होती
ख़ुद से मिलने का ये बड़ा अच्छा मौका है
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कुछ रातें हैं आवारा, कुछ यादें हैं आवारा
जो रोज चली आती हैं तनहाई में आवारा
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आइना मुझसे पूछे है कौन है तू
छोटे से सवाल पर क्यूँ मौन है तू
सुनील मिश्रा "साँझ"
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