मेरी हर आह, तेरी चाह जुदा
मैं तो हूँ इंसान, या तो तू ख़ुदा
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कहें क्या और कहा किसका करें
जतायें किसको, रहा किसका करें
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दिल समझदार होता तो तू मेरा न होता
दिल लगाके आज पछताना ज़रा न होता
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मौत अंजुमन में आके ठहरी है
मेरी जाँ देखके भी बहरी है
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वीराने है, तनहाई है, गुफ्तगू तारों से हुई
अंबर में वो अकेले मिले,
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याद न आओ, और सपनों में दूर भी रहो
ऐसे हालात हों, तो हम अकेले न मिलेंगे
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आई कोई परी सी ओ मुस्कराके मिली
जाके गई वापस दिल जलाके मिली
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अगर दुनिया में रौशन हैं तेरे जलवे
मेरे दिल की आग भी कुछ कम नहीं है
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वो उसकी मुहब्बत में बदल के निकला है
हर वो राह-ए-इश्क से संभल के निकला है
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मुहब्बत हाय तूने किये कितने दिल बर्बाद
इस मैखाने में बता कितने हुए तुझसे आबाद
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नज़र, अदा, चाल, नखरे, तेवर
साकी मैने देखा तेरे सारे जेवर
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तुझसे अच्छी तो मौत मेरी दूसरी महबूबा है
जिस पर यकीन है आयेगी ज़रूर इक दिन
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मै को आज मेरी अकेली साथी बना
पियूँगा जीभर कुछ प्याले साकी बना
सुनील मिश्रा "साँझ"
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