देखते देखते तुम्हें, हुई रात बहुत
कब फिर मिलोगे, है बात बहुत
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अपने पैरों पे खड़ा हूँ कसर बाकी है
साकी तेरे मै का अभी असर बाकी है
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हमने भी देखा आज कुछ ऐसे जीकर
मय की लज्जत पाने को पीते पीते पीकर
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देने को तुझे, अब मेरे पास कुछ भी नहीं
बस एक टूटा हुआ दिल है, कुछ बचा नहीं
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ले जायेंगे तेरे सब ऐश-ओ-तलब, अपने साथ
ये यम के दूत, कुछ इस जहाँ का छोड़ते नहीं
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वफ़ा की राह में, कोई रास्ता नहीं होगा
चलके देखले, मंज़िल का पता नहीं होगा
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दिन रात कैसी उलझन सी ज़िंदगी
किसी लिबास की कतरन सी ज़िंदगी
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मैं हूँ, समंदर है और ये मय है
तीनो आज पूरे नशे में हैं
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शायरी रोज़ मिरा मिज़ाज नहीं होती
मेरे टूटे हुए दिल की अल्फ़ाज नही होती
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कुछ हालातों के मौसमों ने मारा
कुछ शौक-ए-मुहब्बत था हमारा
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चाँद की तारीफ में कितनी ग़ज़ल बनी
एक सितारा टूटा, किसी को ख़बर नहीं
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कैसे जाऊँ मैकदा, मय से बनती नहीं हमारी
साकी को मय पिलाने की, रहती है लाचारी
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रंजिश होती तुझसे, तो तौबा किये होते
मुहब्बत है इसलिए, अब भी इंतज़ार है
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ज़िंदगी की बारीकियाँ कोई दीवाना क्या जाने
वो तो हरपल किसी याद में दिन गिनता होगा
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मेरी परेशानियों को आज देखे कौन ?
इस उम्र में मेरी नादानियाँ देखे कौन ?
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लड़ रहा हूँ ख़ुद से, अपनी ख़्वाहिशें समेटकर
ये मेरी जंग है, किसी और से साझा नहीं होगा
सुनील मिश्रा "साँझ"
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