बाप का जिंदा रहत उ सबकुछ लिखाय लिया !
भाइन बने उल्लू, ख़ुद कै तकदीर बनाय लिया !!
अम्मा मरी तब घर वालन सब कमात रहे !
उहै घर पर रहा सारा जेवर छुपाय लिया !!
हराम कै माल से जब जेब गरुआय लगी !
रोज देशी कै चार पन्नी लगाय लिया !!
जउन बीबी कै फटही साड़ी भी ना नसीब रही !
शहर से पाँच जोड़ी वकील से मँगाय लिया !!
उहौ सोचिस हमार पाप के घड़ा भरि गवा !
पंडित का बुलाय "साँझ" कथा सुनवाय लिया !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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