Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लोगों का कैसा रेला चला है

 

लोगों का कैसा रेला चला है
पर हर कोई अकेला चला है

 

 

भीड़ में सबको आगे ही जाना
जिसको देखो ढकेला चला है

 

 

कागजी नोट चलातें हैं दुनिया
ये कैसा तूफाँ विषैला चला है

 

 

बाप बेटे नहीं आते आमने सामने
घर में जब से झमेला चला है

 

 

रात की नींद पूरी हुई भी नहीं
"साँझ" उठके दफ्तर मरेला चला है

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

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