मैं कैसे उसका एहसान अदा करता !
जो ना मैं क़ातिल को मेरा ख़ुदा करता !!
मेरा ही खूँन उसकी रगों में भी है !
किस दिल से मैं उसे जुदा करता !!
जिसकी रूह पानी से ही काँप जाती है !
मेरी कश्ती का कैसे उसे नाख़ुदा करता !!
उसके जीवन में अभी रौशनी लौटी है !
किस मुँह से जाकर उसे ग़मज़दा करता !!
मैंने तोड़े हैं हर वादे उससे किए हुए !
आख़िरी दम पे फिर क्या उससे वादा करता !!
"साँझ" बड़े दिनो में उसको भुलाया है !
मैं दिल उस पर फिर से क्यूँ फिदा करता !!
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