Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मैं कैसे उसका एहसान अदा करता !

 

मैं कैसे उसका एहसान अदा करता !
जो ना मैं क़ातिल को मेरा ख़ुदा करता !!

 

मेरा ही खूँन उसकी रगों में भी है !
किस दिल से मैं उसे जुदा करता !!

 

जिसकी रूह पानी से ही काँप जाती है !
मेरी कश्ती का कैसे उसे नाख़ुदा करता !!

 

उसके जीवन में अभी रौशनी लौटी है !
किस मुँह से जाकर उसे ग़मज़दा करता !!

 

मैंने तोड़े हैं हर वादे उससे किए हुए !
आख़िरी दम पे फिर क्या उससे वादा करता !!

 

"साँझ" बड़े दिनो में उसको भुलाया है !
मैं दिल उस पर फिर से क्यूँ फिदा करता !!

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ