Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैने अब जीतने की ठान रक्खी है !

 

मैने अब जीतने की ठान रक्खी है !
इसलिए अपनी मूछें तान रक्खी है !!

 

जब जी चाहा ठुकराया, गले लगा लिया !
क्या मैने दिल की दुकान रक्खी है !!

 

इक ज़रा मुँह से ग़लत निकले तो सही !
यहाँ दीवारों ने लगा कान रक्खी है !!

 

सिर्फ उसको पैसेवाला कहना ग़लत होगा !
उसने जेब में कइयों की इमान रक्खी है !!

 

सच सुनने के आदी आज कम ही हैं !
"साँझ" तुमने बड़ी तीखी जुबान रक्खी है !!

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

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