मुझे अब उबाऊ लगती हैं बातें मेरे शहर की !
अब तो इंतज़ार है बस उनकी एक नज़र की !!
कलम गवाह है मेरी हर नज़्म मेरे दिल का आइना है !
ख़ुदा को ही ख़बर है किसने किसके दिल में असर की !!
दाँज देते रहे वो हमारा मेरे ही दुश्मनों से !
बच्चों सी बात करते हैं ना ख़याल अपने उमर की !!
कौन पूछेगा हमसे कैसे हर सब कट रही है !
यहाँ लोग करते रहते बात गर्मी और दोपहर की !!
वो कहते हैं कैसे मय की लत लग गई है हमको !
शराबियों से ही पूछें है कैसे हलक़ से उतरती है हरेक घूँट इस ज़हर की !!
सालों किया इंतज़ार खून के हर घूँट पिए हमने !
अब देने आए हैं हिसाब बिताए उनके साथ एक पहर की !
रोज़ साहिलों से एक ही सवाल "साँझ" पूछता है!
कब लेके आएगा समंदर मेरी मौत आखिरी लहर की !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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