Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पैसों की चिंता में, छोड़ा अपना गाँव

 

पैसों की चिंता में, छोड़ा अपना गाँव,
अब ना वो आजादी, ना पीपल की छाँव !

 

 

ना पीपल की छाँव, छूट गयी गइया मैया,
बापू छूटे बहना छूटी, छूटे बड़के भैया !

 

 

शहर में आकर खा रहे हैं ट्रेन में धक्का,
बचपन छूटा, छूटा गोरी से नैन मटक्का !

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

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