पैसों की चिंता में, छोड़ा अपना गाँव,
अब ना वो आजादी, ना पीपल की छाँव !
ना पीपल की छाँव, छूट गयी गइया मैया,
बापू छूटे बहना छूटी, छूटे बड़के भैया !
शहर में आकर खा रहे हैं ट्रेन में धक्का,
बचपन छूटा, छूटा गोरी से नैन मटक्का !
सुनील मिश्रा "साँझ"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY