Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रात गुप अंधियारी

 

रात गुप अंधियारी,
चाँद बादल में छिपा,
सितारे गुमसुम,
मैं तकता अँधियारा !

 

बारिश की हल्की बूँदें,
मेरे सर को सहलाती,
मैं खोया अतीत में,
फुसलाता ख़ुद को !

 

सहजता रात की,
माने समझाती है,
तुम भी सो जाओ,
कहा मानो मेरा !

 

एक अतीत मेरा,
मेरी परछाई सा,
अट्हास करती,
मेरी ही वेदनाएँ !

 

मैं रहा खोया,
मानो कोई स्वपन,
खुली आँखों से देखता,
माँ ने आवाज़ दी !

 

मैरा सपना टूटा,
मैं जैसे ख़ुद में झूठा,
आया मुझे होश,
बोला हाँ माँ क्या हुआ !!

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

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