ऐसे भी कुछ रिश्ते होते हैं
बिन बात के हम ढ़ोते हैं
बंजर में कब क्या होता है
बीज कहाँ कब बोते हैं
अपनों सा अहसास नहीं
फिर भी खोकर रोते हैं
आधार ही जब मिथ्या है
हरदम पाते खोते हैं
सुनील मिश्रा "साँझ"
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ऐसे भी कुछ रिश्ते होते हैं
बिन बात के हम ढ़ोते हैं
बंजर में कब क्या होता है
बीज कहाँ कब बोते हैं
अपनों सा अहसास नहीं
फिर भी खोकर रोते हैं
आधार ही जब मिथ्या है
हरदम पाते खोते हैं
सुनील मिश्रा "साँझ"
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