साकी मेरे दिल का आज हर दर्द निकाल दे !
थोड़ी नज़रों से पिला, थोड़ी प्याले में डाल दे !
मेरी नज़्मों में अब उसकी ही बात आती है !
थोड़ा सा और दर्द मेरे नालों में डाल दे !!
दूध पिला पिला थक गया पत्थर के बुत को मैं !
क़यामत ही हो थोड़ी दिल के शिवालों में डाल दे !!
हमने सुना है मय ख़ुद भी जलती है खूब !
थोड़ी सी इन बुझती मशालों में डाल दे !!
मौका मिला तो पूछेंगे उस जफ़ाकार से हम !
थोड़ी "साँझ" दिल में उठते सवालों में डाल दे !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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