Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सबकी अपनी व्यथा, एक वो सरकारी स्कूल

 

सबकी अपनी व्यथा, एक वो सरकारी स्कूल,
प्राध्यापक टीचर गये, स्कूल में आना भूल !

 

 

स्कूल में आना भूल, अब हुडदंग हो रहा,
पास के मेरे घर में, मेरा ध्यान भंग हो रहा !

 

 

कहे "साँझ" हमेशा सैलरी, खाते में आ रही,
बच्चों के भविष्य की, किसको चिंता खा रही !

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ