सबकी अपनी व्यथा, एक वो सरकारी स्कूल,
प्राध्यापक टीचर गये, स्कूल में आना भूल !
स्कूल में आना भूल, अब हुडदंग हो रहा,
पास के मेरे घर में, मेरा ध्यान भंग हो रहा !
कहे "साँझ" हमेशा सैलरी, खाते में आ रही,
बच्चों के भविष्य की, किसको चिंता खा रही !
सुनील मिश्रा "साँझ"
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