Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सावन की फुहारें सबको बहलाने आयीं !

 

सावन की फुहारें सबको बहलाने आयीं !
जिंदगी जमके जियो ये बताने आयीं !!

 

 

पेड़ों की सूखती पत्तियों पर गिरती बजतीं !
बारिश की बूँदें नयी धुन ये सुनाने आयीं !!

 

 

कहती है मैं आयी हूँ गर्मी की तपन से !
चहका दो उपवन हम धरा सवाँरने आयीं !!

 

 

एक सखी कहती है अपनी खास सहेली से !
इनकी साजिश है याद पिय की दिलाने आयीं !!

 

 

अबके सावन "साँझ" भी ना सो पायेगा !
ये बादल ये बिजली मेरी नींद चुराने आयीं !!

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ