सावन की फुहारें सबको बहलाने आयीं !
जिंदगी जमके जियो ये बताने आयीं !!
पेड़ों की सूखती पत्तियों पर गिरती बजतीं !
बारिश की बूँदें नयी धुन ये सुनाने आयीं !!
कहती है मैं आयी हूँ गर्मी की तपन से !
चहका दो उपवन हम धरा सवाँरने आयीं !!
एक सखी कहती है अपनी खास सहेली से !
इनकी साजिश है याद पिय की दिलाने आयीं !!
अबके सावन "साँझ" भी ना सो पायेगा !
ये बादल ये बिजली मेरी नींद चुराने आयीं !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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