Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सुनील मिश्रा "साँझ"

 
  • तौबा किया कि हुश्न वालों पर न नज़र डालेंगे
    हुज़ूर बच के निकल जाना बे-मौत मार डालेंगे
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    इल्म बाँटो सबमें, तुम कुछ सिखलाओ तो सही
    अंधेरे दूर होंगे तुम इक दिया जलाओ तो सही
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    ग़म नहीं इसका, कि हम अकेले रहे "साँझ"
    हर रात नींद आयी, तुझे याद करने के बाद
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    आरज़ुयें मेरी ज़िदगी में कैसे कैसे हालात लायी
    कितने आरज़ू में दिल जल गया, कुछ आँसुओं मे बह गयी
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    दिल में रहिये, मेरी जान-ए-जाँ होकर
    ज़िंदा न बचेंगे, मेरी दुश्मन-ए-जाँ होकर
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    जिंदगी कट गई, ढ़ूँढते कितने मुकाम,
    अब जाके रास आया अपना आराम !
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    शायद आज कोई नयी बात हो जाये
    काश तुमसे फिर मुलाकात हो जाये
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    कश्ती को किनारा मिले या डूब जाये आज
    हमारी मंज़िल है मज़धार तो डूबना बेहतर

     

    • किसी को मुहब्बत में सज़ा ख़ुदा न करे,
      मिलाये दो दिलों को फिर जुदा न करे !
  •  

    अकेले रहना है तो रह लेंगे, कुछ शर्तों पर,
    "साँझ" कभी परेशान किसी की अदा न करे !

     

  • आज वो रूठ गये हम से !
    अच्छा लगा नहीं कसम से !!

     

    माना हमसे ग़लतियाँ हुइँ !
    इतनी क्या बेरूखी सनम से !!

     

  • तू मेरे साथ रहे न रहे, तेरी हर याद रहेगी !
    तेरी यादों से ही मेरी रातें आबाद रहेगी !!

     

  • तेरे हुश्न के उन्माद में डूबे ए जमाने वाले !

    तेरी एक दीद के हैं मुश्ताक ए जमाने वाले !!

    मुश्ताक - लालायित

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    अपने आशिक़ के जनाजे से गले लग के तो रो लो !

    कौन जाने फिर तेरे आँसू उसकी कब्र भिगो ना पाएँ !!

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    तुझे किसने कहा मेरी जिंदगी तेरे बग़ैर बसर नहीं होती !

    ग़म में रहता तो तुझे मेरी अय्याशियों की ख़बर नहीं होती !!

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    नज़रें नीची किए वो फूलों सी हया दिखाते हैं !
    उठा लिए तो कड़कती बिजली सी चमकाते हैं !!

    अपनी पलकों पर सजा रखतें हैं कुदरत का तिलस्म !
    हर दिलों में अपने प्यार की खुशबू बिखराते हैं !!

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    पहली उडान में हवाएँ उड़ा ले आईं जाने कहाँ !
    अब तो आसमाँ को देखने से ही कतराता हूँ मैं !!

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    चोट दे दे के मज़ा लेते हैं !
    रूठ जाऊँ तो मना लेते हैं !!

    एक जख़्म ठीक से भरता नहीं !
    दूसरा दे के फिर से दुखा देते हैं !!

     

  • जीतेजी ना हाल लिया, अर्थी पे रोने आए हैं !
    कैसे कैसे लोग यहाँ मरने पे भी सताने आए हैं !!

    चोट पे चोट देकर भी जिनको अब तक चैन नहीं !
    ख़ुद ख़र्राटों से उठकर, "साँझ" आख़िरी नींद चुराने आए हैं !!

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    उड़ा है मेरे घर के ऊपर से एक बादल आवारा !

    लगता है ए भी है इसी गर्मी ए हालात का मारा !!

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  • अपनी मौंजों में लहरें जब किनारों को छूतीं है !

    साहिल उसकी जलन में दम तोड़ देता है !!

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    मुझे अपनी मुहव्बत के तराने तुझको सुनाने और भी होंगे !!

    तू ज़रा घर से निकल तो सही तेरे हम जैसे दीवाने और भी होंगे !!

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    उसके नाम से, मेरा नाम का, कोई झूठा फसाना ही सही !

    उसकी इक निगाह पाने का कोई ओछा बहाना ही सही !!

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    तेरे ईश्क में बीमार को कुछ दवाएँ दे जा !
    छोड़कर जा रहा तो मरने की ही दुवाएँ दे जा !!

    अब इन पुरानी हवाओं में साँस फूलती है मेरी !
    फूँक मार दे "साँझ" थोड़ी ताज़ी हवाएँ दे जा !!

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    ख़ुदा तेरी एक नज़र ही बहुत है !
    मैं क्या तुझसे कमाई माँगूं !!

    तुझसे मुहव्बत में जुदाई माँगूं !
    कि मेरे दिल से उसकी रिहाई माँगूं !!

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    इतने दिनों के बाद पूछते हैं मेरे दिल का हाल हँसकर !

    मैने भी कह दिया एक वेवफा छोड़ गई डसकर !!

     

  • रात चढ़ी आई सुलाने मुझको !
    उनकी याद आई जगाने मुझको !!

    मैं इसी पेशोपेश में था सोयूँ या जागूँ !
    नींद आई दिखाने सपने सुहाने मुझको !!

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    दुनियाँ वालों को कोई मेरी नज़र दे दे !
    वो भी देखें उन्हें मेरी नज़र से !!

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    वक्त बेवक्त पे टूट जाए ओ ऊसूल नहीं !
    अपने ईमान से समझौता कुबूल नहीं !!

    दे सको तो हर किसी से ख़ुशियाँ बाँटो !
    ख़ुदा के घर में कोई नेकी का काम फिज़ूल नहीं !!

     

  • मैंने आपकी नज़र हमारी क्या एक नज़र कर दी !

    आपने तो हमारी उस नज़र को सबकी नज़र कर दी !

     

  • आईना सबको सिर्फ सच दिखाता है !
    पर कहाँ कब किसको नज़र आता है !!

    सब तो देखते हैं इसको आँखे बंद करके !
    वरना सबका ज़मीर पढ़के ही वो शर्माता है !!

     

  • किसे ख़बर कि कौन कल की याद हो जाए !
    कुछ तुम सुनाओ, कुछ मेरी ग़ज़ल पर दाद हो जाए !!

    महफिल में ख़ामोशी मातम सी लगती है !
    छेड़ो शेर ओ सुखन ए रात आबाद हो जाए !!

     

  • उनकी हरेक ख़्वाहिश को पूरा करने में जान मुँह को आती है !

    बीबियाँ फिर भी श्रीमान की कोशिश को आधा ही बताती हैं !!

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    हाले दिल उनको सुनाते भी ना बना !
    दिल को अपने समझाते भी ना बना !!

    आँखें ही बन गईं मेरे दिल का आईना !
    महफिल में यह राज़ छुपाते भी ना बना !!

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    बात करते हो ऐसी, ऐ बात बड़ी छोटी है ।
    आज की हमारी मुलाकात की ए रात, बड़ी छोटी है ॥

    कहाँ तक जाओगे, मुझसे ख़फा होकर तुम ।
    लौटकर फिर यहीं आवोगे, ए दुनिया बड़ी छोटी है ॥

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    घृणा की आग में एक बस्ती को जलते देखा है ।
    एक नन्हे अनाथ को अपनी माँ की लाश पर बिलखते देखा है ॥

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    मेरा दिल मेरे ही पास रहे तो अच्छा है ।
    किसी को देकर पछताने से तो अच्छा है ॥

     

  • हम छोटे ज़रूर थे, पर बे-एतबार कभी न थे !
    थोड़े बेदार ज़रूर थे, पर बेज़ार कभी न थे !!

    बेदार - जागरूक
    बेज़ार - गुस्सैल

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    वफाई लग रहीं है पानी पानी सी !
    जब से बेवफाएँ हुईं खानदानी सी !

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    आज भरी महफिल में मुस्कराओ तो !
    गश खाके कितने गिरेंगे आजमाओ तो !!

    लोग कहते हैं तुम्हारा वो ज़माना न रहा !
    सबकी ग़लतफहमियाँ दूर कराओ तो !!

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  • लोग कहते हैं जो उनसे मिलता है वो उनका हो जाता है !

    हमने सोचा है अब देखेंगे वो कितनी बार मिलने से मेरे हो जायेंगे !!

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    माथे पे शिकन, और ए बदहवास आँखें !
    धोखा हुआ है इश्क़ में, या बिजली गिर पड़ी !!

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    मेरा हर शुकून उनके हर शुकूँ से है !
    गर है ए जुनून तो मज़ा मुझे इस जुनूँ से है !!

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    ए कैसी ख़ुशबू बिखरी है फिज़ाओं में आज !

    लगता है कोई काफिला हुश्न वालों का मेरे शहर से गुजरा है !!

     

  • तू अपने इरादे तो बता, वफाई करना है या जफ़ाकार होना है !

    हम भी सोचेंगे तुझसे दिल लगाना है,
    कि तुझे सरे बाज़ार करना है !!

    *

    मेरी मुहब्बत की चाह उनके दिल तक भी जायेगी !
    अब देखना ये है कि वो हसीन घड़ी कब आयेगी !!

    *

    दिल के मुआमला हो तो दिल से ही काम लेना ज़रूरी है !
    अक़्ल हमेशा सही रास्ते दिखायेगी दिल का रास्ता बंद करके !!

    *

    हमारी उनसे नजदीकियाँ ज़माने में बनी !
    याद है एक ही दिन में दूरियाँ उतनी ही बनी !!

    *

    किसी ने कहा है इश्क छुपाये नहीं छुपता !
    सच ये भी है यही दिल है जो इसका राज खोल देता है !!

     

  • पैसे की ताक़त ही किसी को समंदर पार ले आयी !
    मैं अपनी ग़ुरबत में अपने घर से भी ना निकला !!

    *

    सफर में चल रही है ये जिंदगी, मंज़िलों की मरीचिका में !
    फैसला तेरे हाथों में है जहन्नुम मिलेगा या जन्नत नसीब है !!

    *

    हूर सा हुश्न और ये हिजाब का बार बार उड़ना !
    ख़ुद नक़ाब भी शर्माये है पर्दा करने से !!

    *

    सोचा था मुहब्बत मुझे आबाद करेगी !
    अंजाम ये है कि इसने दर्दे दिल से भर दिया !!

    *

    जब से इंसान कौड़ियों मे बिकने लगा !
    भ्रष्टाचार का कारोबार सरे आम दिखने लगा !!

     

  • हर इंसान को चाहिए इंसानियत की हद में रहे !
    जिसकी जितनी औकात, अपनी कद में रहे !!

    सबको बक्शा है, हैसियत से हिसाब करके !
    गुमान न हो किसी का और ना कभी मद में रहे !!

     

  • मेरे रब ये तेरी मर्जी है तू मुझे आबाद कर या ख़ाक कर !
    कोई बूढ़े से पेड़ की कोई हल्की सी पत्ती या उसकी शाख़ कर !!

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    इजाज़त हो तो कुछ अर्ज़ करें तेरी आँखों पर !
    जब देखता है "साँझ" इनको इक नयी ग़जल बनती है !!

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    मंज़िलें उसकी आसानियों से पायी गयीं !
    "साँझ" की राह के पत्थर भी उसके दुश्मन थे !!

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    सबकी नज़रें टिक गयीं उस चहकते फूल पर !
    मैं सोचता हूँ उस मुरझायी कली का क्या होगा !!

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    मुहब्बत में आबाद हुये वो क्या बतायेंगे !
    'साँझ' बर्बाद हुआ है यह सबको कहे देता है !!

     

  • "डिगरियों" के साथ कुछ और भी हो कैरियर चमके !
    इस उम्र में "साँझ" क्या करे एक डिपलोमा "जी हुजूरी" में !!

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    इन ख़ुश्क आँखों में.... अब कोई..... सपना नहीं !
    हरेक कतरा उन आँसुओं का सब कुछ बहा ले गया !!

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    मैंने उसकी हिमायत में..... महफिल में कुछ कहा !
    लोग मुझको भी उसके साथ सरे-आम कर गये !!

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    उसके दिल की बस्ती को एक शख़्स ने पल भर में उजाड़ दिया !
    "साँझ" हजारों लहमों में भी कोई उसके दिल में घर कर नहीं सकता !!

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    अपनी नादानियों से अब तो तौबा कर लो !
    तुम्हारी अभी उम्र नहीं दर्द-ए-दिल झेल जाने की !!

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    यार की वफाई में दिल बाग बाग होता है !
    बेवफाओं से वही दिल जख़्म जख़्म भी होता है !!

     

  • पैर उखाड़े मेरे, कोई सिकंदर आने दे !
    बहा ले जाये जज़बात, समंदर आने दे !!

     

    यूँ दूर दूर से मुझको क्या जानोगे !
    पहले तो अपने दिल के अंदर आने दे !!

     

  • मेरी मौत पर, मेरी क़लम से कोइ ऐसा शे'र निकले !
    "साँझ" की जाँ चाहे तो निकले पर मेरी जान की जाँ भी लेके निकले !!

     

  • आँधियों से कब कर ली "साँझ" दुश्मनी तुमने !
    जो चराग़ों को साथ देकर मेरा घर जला दिया !!

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    ज़िंदगी में कभी कोइ ऐसा मज़ा न हो !
    "साँझ" उसके जाने से ज़िंदगी बेमज़ा न हो !!
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    चली है ऐसी बयार बेवफायी की !
    कौन पूछेगा हाल अब वफायी की !!

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    आप जब आतें हैं तो खूब आतें हैं !
    और फिर मुहब्बत.. में डूब जाते हैं !!

    नज़र भर क्या हमपर नज़र करते हैं !
    दूसरे पल ही ख़ुद ही ऊब जाते हैं !!

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    उफफ.. ये इश्क़ भी क्या आफत है !
    शुक्र है..... मेरी जाँ तो सलामत है !!

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    अब तक उनकी हसरत में मेरी जान जाती है !
    वो तो आसूदा हैं मेरा हाल क्या जाने !!

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    अपने दुश्मनों को भी भूलकर कभी बेआबरू ना कर !
    दुश्मनी के भी हैं कुछ उसूल नये रिवाज़ शुरू ना कर !!

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    चल के पैदल ही तेरे साथ सफर कर लेंगे !
    हम तेरी सादामिज़ाजी से बसर कर लेंगे !!

 

 

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