Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुमने जैसे समझ लिया वैसा नहीं हूँ मैं

 

तुमने जैसे समझ लिया वैसा नहीं हूँ मैं
किसी शाख का टूटा पत्ता नहीं हूँ मैं

 

 

ज़बान दे दिया है तेरा साथ छोड़ने का
अपनी बात पर टिका हूँ झूठा नहीं हूँ मैं

 

 

मेरे भी कुछ उसूल हैं उस पर टिका हूँ मैं
हर रोज़ हर दिशा में बहूँ हवा नही हूँ मैं

 

 

बिन बात भिड़ जाऊँ ऐसा नादाँ भी नहीं
अपनी मर्जी का शहंशाह, पर ख़ुदा नहीं हूँ मैं

 

 

किसी की आशा कोई आँख का नूर हूँ
"साँझ" याद का बहता आँसू नहीं हूँ मैं

 

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

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