Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उसकी पूरी मनमानी हो गयी

 

उसकी पूरी मनमानी हो गयी,
मुझसे ये क्या नादानी हो गयी !

 

 

गुरूर था ख़ुद पे, यकीं कैसे गया,
मैं आज कैसे गंदा पानी हो गयी !

 

 

दिल की सुनो तो होश जाता है,
बैरन मेरी ख़ुद की जवानी हो गयी !

 

 

दो पल में मिट गया मेरा वजूद ,
अबला नारी की कहानी हो गयी !

 

 

"साँझ" अब सपने मेरे टूटे सारे,
ज़िंदा हूँ, ज़िंदगी बेमानी हो गयी !

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

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