उसने फिर घर पर बुलाया नाम का !
फिर वही रोना रुलाया वफा के नाम का !!
वो रूठे इस कदर कि हम गिड़गिड़ायें !
हमने भी यारों उनको मनाया नाम का !!
आज की नौकरी, पैसा, शुकूँ दोनो नहीं !
बच्चे कहते पापा तुमने कमाया नाम का !!
भटकों को उसने और भी भटका दिया !
उसने फिर नेत्रृत्व का बीड़ा उठाया नाम का !!
तेरा जिक्र और वो ज़लज़ला, और ये मेरी प्यास !
ऐ समंदर, क्या समंदर तू भी है बस नाम का !!
रिश्ते नाते, प्यार, पैसा, सब है बस नाम का !
'श्याम' का बस नाम सच्चा, बाकी सब है नाम का !!
क्या लिखा है इक दाद भी आती नहीं !
"साँझ" फिर शायर कहाया नाम का !!
सुनील मिश्रा "साँझ"
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