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खुद से खुद की शादी.

 


सुनीता शानू


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यूं मैं किसी के भी व्यक्तिगत फैसले को लेकर कोई कटाक्ष नहीं करती, लेकिन जब बात पब्लिक में आ गई है तो लिखना ही पड़ेगा...

.. शादी का अच्छा ख़ासा मज़ाक है बस।
इतना ही पैसा और समय था, तो किसी जरुरतमंद के लिए खर्च किया होता।
बहुत दोस्त हैं ऐसे जिन्होंने शादी नहीं की, नही की तो नहीं की। इसमें ढिंढोरा पीटने की जरुरत ही क्या है?
ऐसा कौन है जिसे खुद से प्रेम नहीं है! सभी करते हैं, लेकिन जो सिर्फ़ दिखावा ही करते हैं वह न ख़ुद के होते हैं न ही दूसरों के।
मातापिता तक की परवाह न करने वालों से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं!
इस शादी को सपोर्ट देने का मतलब है, पूरे समाज का मज़ाक उड़ाना।
मैं न उस बला की तस्वीर लगाऊंगी न नाम का ज़िक्र ही करूंगी। यह बात सिर्फ़ और सिर्फ़ उन बच्चों के लिए है जो कल का भविष्य निर्माण करेंगे।
ख़ुशी सिर्फ़ अपने आप से प्रेम करने में कतई नहीं है बच्चों, खुशियां इस संसार में भरी पड़ी हैं, बस ख़ुद से बाहर निकलने की देर है...
यह प्रकृति, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे संसार भर के निराश्रित सबको आपके प्रेम की जरुरत है। अपना पैसा और समय उनपर भी खर्च करके देखो तो खुद पर प्यार आ जाएगा।
©सुनीता शानू

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