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माँएं ऐसी होती हैं

 


सुनीता शानू

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माँएं ऐसी होती हैं
सुबह उठने के साथ ही फोन की घंटी बजने लगी, रातभर से ससुर जी की तबीअत को लेकर घर परेशान था। मैंने लपककर फोन उठाया उधर माँ थी। मां को प्रणाम करके.मैने बोलना शुरू किया मां पिताजी की तबीअत ठीक नहीं है आजकल... मां ने सुना और एक गहरी सांस लेते हुए कहा, घर का ख़्याल रख बेटा, बुजुर्ग हैं सेवा कर। मैने पूछा बाबा कैसे हैं बात करवाओ तो उन्होंने कहा कि अच्छे हैं सो रहे हैं।
तीन दिन बाद फिर मां का फोन आया। पूछा सब ठीक हैं न, मैंने कहा हां मां, तब उन्होंने कहा कि तेरे बाबा भी अब ठीक हैं, मैं चौंक गई ! उन्हें क्या हुआ। उन्होंने बताया कि तुझे यही बताने के लिए ही फोन किया था, फिर तेरे ससुरजी की बीमारी सुन चुप रह गई, कहीं तूं घबराहट में अपना कर्तव्य छोड़ दौड़ी न आए।
माँए ऐसी ही होती हैं। उन्होंने अपना कर्तव्य निभा दिया, लेकिन मैं...
ईश्वर से पूछती ही रहती हूँ, मेरे इतने इम्तिहान क्यों, सुना है ईश्वर अपने भक्तों के बहुत इम्तिहान लेता है। मगर दर्द तो होता ही होगा उसे भी

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