सुनीता शानू
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मजबूर थी मैं, पूरा दिन गुज़र गया परन्तु उस इंसान के लिए दो शब्द भी नहीं लिख पाई जिनके आदर्शों पर उम्र भर चलती रही।
जी हाँ, मेरे पिता मेरी ज़िंदगी में आने वाले वह पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें मैंने समझा, प्रेम किया, जो मेरे जीवन का आदर्श बने।
मेरे जीवन में जो कुछ भी अच्छा-सा है सब मेरे माता-पिता की परवरिश है। यह उनके संस्कार हैं उनकी दी हुई सीख है जो बुरे से बुरे वक्त में भी मुझे गिरने नहीं देती, अपने फर्ज़ से हटने नहीं देती।
जब मैंने होश संभाला पिता देख नहीं सकते थे। एक दुर्घटना में दोनों आँखें चली गई थी। लेकिन मैंने पिता के संघर्षों को देखा वही मुझमें गहरे उतरते चले गए...
मैंने दुनिया को पिता के अनुभवों से जाना, समझा, मेरी ज़िंदगी का हर पल उनका ऋणी है और रहेगा।
मेरे पिता की बहुत लंबी कहानी है जो मेरी माँ से शुरू और उनके चारों और घूमकर उन्ही पर खत्म हो जाती है।
फिर कभी फुरसत में सुनाऊंगी।
अभी बस इतना ही कहना चाहती हूँ ईश्वर से, आज के दिन यदि किसी की कोई ख़्वाहिश पूरी होती हो तो हर जन्म में मैं उनकी ही बेटी बनकर जन्म लूँ यही मेरी अंतिम ख़्वाहिश है।
(तस्वीर पुरानी है
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