Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अजनबी

 

कल तलक सख्स मुझसे जो था अज़नबी
राह में यूं मिला हमसफर बन गया
वो मेरे साथ कुछ दूर तक ही चला
पर जरा सा सफर वो जफ़र बन गया

 

ओस की बूंद सा हूं गुलाबों पे मैं
धूप बनकर वो देता मुझे राहतें
बिन मेरे उसकी सांसे भी कामिल नही
थी खबर उसको वो बेखबर बन गया

 

रूह तेरी मेरी रूह में बस गयी
और इबादत बनी हैं मेरी चाहतें
जान लेकर रहेगा मेरी इश्क़ ये
है पुराना तो शायद जहर बन गया

 

 

©सूरज कुमार मिश्र

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ