कल तलक सख्स मुझसे जो था अज़नबी
राह में यूं मिला हमसफर बन गया
वो मेरे साथ कुछ दूर तक ही चला
पर जरा सा सफर वो जफ़र बन गया
ओस की बूंद सा हूं गुलाबों पे मैं
धूप बनकर वो देता मुझे राहतें
बिन मेरे उसकी सांसे भी कामिल नही
थी खबर उसको वो बेखबर बन गया
रूह तेरी मेरी रूह में बस गयी
और इबादत बनी हैं मेरी चाहतें
जान लेकर रहेगा मेरी इश्क़ ये
है पुराना तो शायद जहर बन गया
©सूरज कुमार मिश्र
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