Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

पेन

 

तुम्हारा वो पेन
जो तुम उस दिन एग्जाम के बाद अपनी मेज़ पर छोड़ कर चली गयी थी
मैंने आज तक संभाल कर रखा है
उस पेन में श्याही नहीं है
फिर भी अक्सर मैं उससे लिखा करता हूं
कुछ यादें कुछ बातें
जो आंखे पढ़ नहीं पाती
पर दिल समझता है
क्योंकि इस पेन को हासिल है
तुम्हारी उंगलियो का प्यार
और तुम्हारी लाली की महक
वो प्यार जो आज भी मुझे एहसास कराता है
तुम्हारे पास होने का
वो खुशबू, जिससे आज भी महक उठती हैं
मेरी सांसे
और ये सब शायद उस स्याही की तरह
कभी खत्म नही होगा...

 

 

©सूरज कुमार मिश्र

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ