तुम्हारा वो पेन
जो तुम उस दिन एग्जाम के बाद अपनी मेज़ पर छोड़ कर चली गयी थी
मैंने आज तक संभाल कर रखा है
उस पेन में श्याही नहीं है
फिर भी अक्सर मैं उससे लिखा करता हूं
कुछ यादें कुछ बातें
जो आंखे पढ़ नहीं पाती
पर दिल समझता है
क्योंकि इस पेन को हासिल है
तुम्हारी उंगलियो का प्यार
और तुम्हारी लाली की महक
वो प्यार जो आज भी मुझे एहसास कराता है
तुम्हारे पास होने का
वो खुशबू, जिससे आज भी महक उठती हैं
मेरी सांसे
और ये सब शायद उस स्याही की तरह
कभी खत्म नही होगा...
©सूरज कुमार मिश्र
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