किसी ख्वाब की मानिंद
कुछ हुआ था.... अचानक
मुट्ठी मंे जकड़ा एक कागज
और होंठो पर गुडबाय
फर्क इतना था सिर्फ कि
अंधेर में ऑखे डुब डुबा रही थी
दोस्त बोला क्या हुआ........अरे.........
बाहर फीके, मटमैले बादल सरसराते
अन्दर एक जादुई गंध तिर रही थी
मानवीय अनुभूति से परे
एक चिमगादड़ हमारे ऊपर फांय-फांय निकली थी
भूरी-भूरी सी भुरभुरी चट्टाने
बोझिलता से सिहर जाती थी
मैं ठिठक गया था.........
खामोशी को चीरती गिटार बज रही थी
एकदम निर्विकार से हावभाव
तेज हवा की थाप से बादल बिखर से गए थे
हमारे इर्द-गिर्द सूखी पत्तियों के ढेर
चरमराने से लगे थे
अब कोई अफसोस नहीं
चाहे मौत कैस े भी आ जाए
अब चाहे जैसे भी हम पर कहर टूटे
चाहे मुझसे वे रूठे
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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