Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

नवगीत याद रहे

 

नवगीत
याद रहे
आसमां तले
ऐसे जिये
एक सादगी
एक ठहराव
जी भर कर पियो
गहमागहमी
बाली चहल पहल
स्ुाुलगते सवालो के न पूछे जवाब?
आक्रमणकारीयो के
न हो अब वार्तालाप
शान्ति सिर्फ न बने ख्वाब
इधर उधर
फैला न रहे
कब्रो का गर्द का गुबार
जंग के बीच
फैले सिर्फ फैले
हमदर्दी और प्यार
बैचैनी की बिचित्रता
न करे व्याकुल
गली कूचे घर बाहर
काली घटाटोप न हो साकुल
याद रहे
उस बक्त वे
कैसे दिन रहे हांेगे
फिरंगियों के खिलाफ
जब बंदेमातरम गाते होंगे
जान हथेली पर रखकर
जब पहली बार सडंक पर निकले होंगे
गाधी नेहरु सुभाष की
बैचैनी के क्या कहने होंगे
आजाद भगत की ऑखो से
नीद के झोके कैसे गायब हुऐ होंगे
मात्रभूमि की स्वतंत्रता के
सपने जब पहली बार जिन्दा हुए होंगे

 

 

 

सुरेन्द्र अग्निहोत्री

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ