Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पूरे दिन भर

 

पूरे दिन भर
इतने सारे संघर्ष
जिनकी एक झलक
एक नयी सुनामी की तरह
पूरी सुनहरी बालू
कोयले और लोहे पर नजर
अपने कब्जे मंे लेना चाहते
सिर्फ कौड़ियों के दाम मंे
हड़पने के लिए विकास का तंत्र
सब पर आक्रमण
अब उनको हटाने के सिवाय
ढकेलना और वंचित करना
बदलाव की इस सोच पर
हर क्षेत्र मंे व्यार वह रही है
मौका गॅवा दिया तो,
फिर क्या होगा?
भूमि पर, नदी पर, पेड़ पर
निरंतर क्रांति का सपना पल रहा
हर कोई आत्मसुरक्षा के लिऐ
मुठ्ठी ताने खड़ा है
पूॅजीवाद की शैतानी प्रवृति पर
संघर्ष के लिए डटा है
संघर्ष जीतना इतना आसान नही है
वे जमीन पर कब्जा चाहते है
उन्होंने हम सभी को
विकास विरोधी लोग बता दिया है
हमारी शांति मंे फैलाना चाहते
अशान्ति का अंतहीन सिलसिला
जिससे फैल जाये भयावहता
राजनैतिक जवाब नहीं देना चाहते
एक आत्महत्या कर रहा गॉव में
एक संघर्ष मंे गोली खा रहा पाव में
कोई नही जानना चाहता है उनके दुख दर्द
जिनके लिऐ विचारे संघर्ष करते रहे हमदर्द
लोहे से लोहा काटने की नीति
किसी ने पायी हार, किसी ने जीती
अपनों से ही छले जा रहे हम
न खुशी रही अपनी न रहे गम!

 

 


सुरेन्द्र अग्निहोत्री

 

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