कोई हसीं ग़ज़ल मुस्कुराकर निकली किताब से, मेरे सामने खड़ी मेरी दिल की मेहमान बनकर! आप जब यूँ लबों पर मुस्कराहट उतार लाती हो, शर्मीली सी फूल रह जाती है बेजुबान बन कर! सीख लेती काश वो खुश रहने की अदा आपसे, फूलों को निहार लेते हम कभी मेहरबान बनकर! ये शरारत जो सर पे बैठी है जुल्फ हो कर, इसे रोक लो ये उड़ती है तूफ़ान बनकर! आँख को क्या कहूं मै आँख के सिवा, कई सागर बसे इनमे अश्कों का समान
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