Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मै और मेरा लक्ष्य

 

बड़े विचित्र है हम दोनों

बड़े पवित्र है हम दोनों

मै और मेरा लक्ष्य

किसी त्रासदी के

चरित्र है हम दोनों

मै आस्तिक हूँ

मै प्राकृतिक हूँ

इसीलिए......

एक लक्ष्य चुना मैंने

सत्यम शिवम सुन्दरम

पाना पथ पहचाना मैंने

लिए हुए है आकर्षण

अद्वितीय ,अनुपम उत्कर्षं

कब पाऊं उसे प्रतीक्षा में वो

कैसे पाऊं उसे शंसय में मैं

साहस न उसमे उतरने का

न मुझमे उड़ने की क्षमता

एक आकाश की दूरी मध्य में

एकांत से बड़कर भयावहता

कभी छु लूँगा अपने लक्ष्य को मै

कभी उड़ पाउँगा नील नभ में मैं

कभी उगेंगे पंख मेरे

लहराऊंगा नील नभ में मैं

है यही प्रसन्नता पर्याप्त मन में

मेरा लक्ष्य सदा ही रहेगा मेरा

सुलभ हो या दुर्लभ हो मार्ग

एक लक्ष्य एक मार्ग ही होगा

पहुँच जाऊंगा उसके गुरुत्वकर्ष्ण में

चाहे वहीं निस्वास हो जाऊं

पर लग्न बहुत है लक्ष्य की

उस हेतु कुछ भी कर जाऊं

उसे छूने के लिए चाहे तो

हाथ भी अपने बेच डालूँ

उड़ कर जाने के लिए उस तक

पंख भी कटवा कर फ़ेंक डालूँ

मै अर्जुन का तीर.......

वो तैरती मीन का नेत्र है

है यही यही लक्ष्य मेरा

पूरा ब्रह्माण्ड मेरा रणक्षेत्र है

 

सुरेन्द्र कुमार ’ अभिन्न ’

 

 

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