Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रहस्य

 


क्या गुमसुम रहना तेरी प्रकृति है ?

क्या चिंताओं के मानचित्र को

तेरा ही चेहरा मिला पृष्ठभूमि के लिए

क्यों नही ? मुस्करा के इस रहस्य से

परदा उठा देते हो तुम,

कब तक मोनालिसा की भांति

रहस्य में लिपटी रहोगी तुम

उन आंखों के पानी का क्या हुआ ?

धरती के जल भंडारों की तरह

विलुप्त हो गया कहीं ?


तेरे मुख की वैभव कांति
गई कहाँ खो बोलो तो
क्या वृक्षों से रहित बंजर भूमि हो गई तुम ?
खतरे उठा रही हो पर्यावरण की तरह
तुम कुछ कहती क्यों नहीं?
तुम्हारा तो मुंह भी है
कान भी
सुन भी सकती हो सुना भी
धरा तो कुछ भी नहीं कर सकती
बस सहती रहती है
मैं अकेला तो तैयार हूँ,
तेरा साथ निभाने को
बस तुम मूकता त्यागो
और मुक्ता बन जाओ
कब तक रहोगी रहस्य मोनालिसा बनकर

 

सुरेन्द्र कुमार ’ अभिन्न ’

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