Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चीरहरण

 

बुरे कर्मों से प्रतिदिन गुनाहगार बन रहा है

जरा सोच इनसान तू कैसा गुनाह कर रहा है ।

मानवता को सरेआम षर्मसार कर रहा

उन्नति के पथ पर बढ़ती नारी को

हैवानियत के खौफ़ से भर रहा है।।

जिस कोख से तूने लिया जन्म

बदनाम उसे क्यों कर रहा है !

कब मोल चुकाएगा ममता के उपकारों का

कर बेआबरू दामन ममता का उसे षर्मिद़ां कर रहा है।।

अपने कर्मों से प्रतिदिन ....................................

भरे अरमानों बन्धाई थी राखी बहन ने

भरी सभा चीरहरण से बचाई थी लाज कृष्ण ने

त्रेता युग का कहीं, बेहतर था रावण तुझसे।

किया हरण सीता का मगर सुरक्षाचक्र में रखा था

लानत है जिंदगी पे तेरी, ज़ल्लाद बन रहा है

इक खिलती जान को जिंदा लाष कर रहा है।।

अपने कर्मों से प्रतिदिन ..........................................

सुषिक्षित होकर नारी, आज आगे बढ़ रही है

घर, समाज, देष का नेतृत्व कर रही है

स्ंाजो कर सारे रिष्तों को भावना से जोड़ रही है।

क्यँू न देकर सहयोग मानव उसे अपमानित कर रहा है

वासनी रूह लेकर जिस्म से अपनी भूख मिटा रहा है

क्यों कुकर्मो से औरत का जीना हाराम कर रहा है ।।


अपने कर्मों से प्रतिदिन .............................................

 

 

 

सुषमा देवी

 

 

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